Thursday, March 26, 2009

(बेदिल दिल्ली) मैं न रहूँगी दिल्ली में-


“ मैं यहाँ सब कुछ छोड़ कर आई थी गाँव से। गाँव में मेरे घर की बड़ी सी ज़मीन थी जिन्हें इनके (शौहर की ओर इशारा करते हुए) ताया-आया ने घेर लिया। अब यहाँ से भी भगाया जा रहा है हमें। हम तो यहाँ से भी गए और वहाँ से भी। अगर जगह मिली तो यहाँ रहूंगी वरना नहीं रहूंगीं........ किस उस पे रहूँ?.......मैं दिल्ली मे नहीं रहूंगी।"

मोइना बाज़ी सन 1983 से जेपी कॉलोनी बस्ती में रह रही हैं। जब वो आई थी तो गिने-चुने मकान थे यहाँ। मकान क्या बांस-बल्ली में पर्दे टांग कर रहते थे लोग। किसी घर में कोई दरवाज़ा नही होता था। कहीं जाते थे तो पर्दा डाल कर निकल जाते थे। आसपास कूड़े का ढेर लगा होता था। ढेर सारे गढ्ढे थे। गत्तों का एक गोदाम था। धीरे-धीरे यहाँ लोग आते गए और बसते गए। पहले यह जगह इतनी खुली थी कि यहाँ पर खाट बिछा कर बैठा जा सकता था। यहाँ से ट्रक गुज़र जाया करते थे मगर आज एक आदमी के अलावा दूसरा नहीं गुज़र सकता।

वो बताती हैं, "रेवाड़ी, हरियाणा से मैं आई थी यहाँ। मेरे शौहर यहाँ के धोबी घाट पर काम करते थे इसलिए मैं यहीं पर रहने लगी।हमने इस जगह के गड्ढों को मलबे से भर कर समतल किया। उस वक्त यहाँ पर ना नालियाँ थी, ना पानी आता था और ना ही बिजली के कनेक्शन थे। आस-पास बहुत सारे नीम, पीपल और जामुन के पेड़ थे। पहले लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाते थे हम। यहीं अपनी बड़ी बेटी की शादी की। वो हंसी-खुशी के दिन थे। लेकिन अचानक मेरी ज़िंदगी में दुख का पहाड़ टूटा और मेरा 16 साल का बेटा अयूब, जो नौवीं में कक्षा पढ़ता था, कार एक्सीडेंट में रीढ़ कि हड्डी टूट जाने के कारण हमेशा के लिए हमसे जुदा हो गया।"

आज जब जेपी कॉलोनी मे फिर सर्वे हो रहे हैं तो मोइना बाजी इस जगह से जुड़े अपने उन लम्हों को याद करके अच्छे दिन के लिए खुश भी होती हैं मगर अपने बेटे का ध्यान करके गमगीन हो जाती हैं।

आज जब़ वो अपने कागज़ातो को फिर से खोल कर देख रही थी और अपने बीते हुए लम्हों को बता रही थी तो लगा जैसे वो अपनी जगह और अपने रिश्तों की गुत्थम-गुत्थी में हैं जहाँ एक अनचाहे फैसले ने उन्हे इन दोनों पर फिर से सोचने के लिए मजबूर कर दिया है।

फरज़ाना और सरिता

सभार- जे.पी.कॉलोनी, नई दिल्ली-2

3 comments:

ghughutibasuti said...

बस्तियों में रहने वालों का दुख बहुत अच्छे से कहा है।
घुघूती बासूती

संदीप said...

ब्रजेश क्‍या आप बता सकते हैं कि यह पेंटिंग किसकी है...

Zirah said...

अब जब खबरों में संवेदना गायब हो रही हो तो ऐसे खबर की बड़ी भूमिका होती है।