
हिन्दी में खबर का रंग- ढंग बदला है। जबकि, अंग्रेजी में कई प्रयोग हो रहे हैं। हिन्दी के संपादक को रिपोर्ताज की जरूरत नहीं है। अब आप अनाथ की जगह यतीम का भी प्रयोग नहीं कर सकते हैं। खैर! जनवरी 1976 में छपी एक खबर की कुछ पंक्तियां आपके नजर। पढ़कर मालूम होता है कि खबर में ऊर्जा कैसे आती है –
दुष्यन्तकुमार अब नहीं रहे
गत 30 दिसम्बर को हिन्दी ने दुष्यन्तकुमार के रूप में एक बहुत ही पैनी लेखनी का धनी रचनाकार खो दिया। चुके हुए, वयोवृद्ध रचनाकारों के निधन पर भी यह कहने की परंपरा है कि उनके चले जाने से साहित्य की अपूरणीय क्षति हुई, तब दुष्यन्तकुमार के निधन पर क्या कहा जाये ! अभी उनकी उम्र ही क्या थी- सिर्फ 42 वर्ष! वह लिख रहा था- लगातार लिख रहा था।
पिछले दिनों उसकी हिन्दी गजलों का संग्रह साये में धूप निकला, जो काव्य-जगत को उनकी अमूल्य देन है। एकदम सादी जुबान में समसामयिक स्थितियों पर जैसी गहरी और चुभती हुई बातें इन गजलों में कही गयी हैं वे किसी मामूली प्रतिभा के बूते से बाहर थीं।
दुष्यन्तकुमार जैसा कवि ही वे बातें उस तरह कह सकता था। और दुष्यन्तकुमार अब हमेशा के लिए खामोश हो गया है ! तो हिन्दी में गजलें कहने का जो एक नया सिलसिला उसने शुरू किया था उसे अब कौन आगे बढ़ायेगा ? कोई नहीं, शायद कोई भी नहीं। सचमुच हिन्दी की यह अपूरणीय क्षति है।

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