रेणु और गाम-घर
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खेत में जब भी फसल की हरियाली देखता हूँ तो लगता है कि फणीश्वर नाथ रेणु खड़ें
हैं, हर खेत के मोड़ पर। उन्हें हम सब आंचलिक कथाकार कहते हैं लेकिन सच यह है
कि व...
2 weeks ago
williewonker के कैमरे में कैद कश्मीर वादी की कुछ पुरानी तस्वीरें। हालांकि अब वो बात कहां!
वादी में घूमते हुए फिल्म "यहां" का इक संवाद खूब याद आता रहा- कैप्टन अमन: यकीन नहीं होता कि कभी यहां शम्मी कपूर नाचा करता था।
इस पर तपाक से हवलदार ने कहा: सर जी, आज उसका लौंडा नाचकर दिखा दे यहां!
यहां सन 1931 में ही लिखे गए दो गीतों पर गौर करें- मत बोल बहार की बतियां (प्रेमनगर), सांची कहो मोसे बतियां, कहां रहे सारी रतियां (ट्रैप्ड-1931)। आगे चलकर साहिर ने अरबी-फारसी भारी-भरकम शब्दों का यूं इस्तेमाल किया- ये कूचे ये नीलाम-घर दिलकशी के, ये लूटते हुए कारवां जिन्दगी के। (प्यासा)।
जैसे- बंदा-नवाज, वल्लाह, खादिम, आफताब, दिलरूबा, दिलबर, सनम, वादे-सदा आदि। जैसे- माना जनाब ने पुकारा नहीं, वल्लाह जवाब तुम्हारा नहीं (पेइंग-गेस्ट)। आंखों-ही-आंखों में..., किसी दिलरूबा का नजारा हो गया (सीआईडी)।अब ये शब्द आम नागरिकों की जुबान पर चढ़ चुके हैं। दूसरी तरफ शकील बदायूंनी ने गीत लिखते समय उलफत (अरबी) शब्द का खूब इस्तेमाल किया। जैसे- उलफत की जिन्दगी को मिटाया न जाएगा (दिल्लगी)।
जैसे- तुम गगन के चंद्रमा हो, मैं धरा की धूल हूं। तुम प्रणय के देवता हो, मैं समर्पित फूल हूं। (सती सावित्री)। इंदीवर ने भी लिखा- चंदन सा बदन, चंचल चितवन या कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे।इन गीतों की जबर्दस्त कामयाबी ने फिल्म जगत में बन रही उस धारणा को झुठला दिया कि सफल गीतों में उर्दू के शब्दों की बहुलता जरूरी है। अब तो ये सारे शब्द आम-ईमली हो गए हैं।
जब वे शाही इमाम बने उसके कुछ ही दिनों बाद दिल्ली के किशनगंज इलाके में भयानक दंगा भड़का। लोग बताते हैं कि वह तकलीफ का वक्त था। जिसमें मुसलमानों को शाही इमाम ने मदद पहुंचाई। इससे जहां उनकी शोहरत फैली, जिससे वे सत्ता पक्ष की आंख की किरकिरी बन गए। वही समय था, जब संजय गांधी कांग्रेस में मायने रखने लगे थे। उनके इशारे से सत्ता के गलियारे में पत्ते खड़कते थे।
वे बताते हैं, “पाकिस्तान के रावल पिण्डी से यहां आने के बाद मेरे पिता प्राणनाथ ने इस दुकान की नींव रखी थी।”
विश्विद्यालय के एक प्राध्यापक ने बताया कि खाने-पीने के कई बेहतरीन साधन कैंपस में सुलभ हैं। फिर भी चाचे दी हट्टी के देशी ठाठ का अपना रूआब है। लड़के-लड़कियां वहां खाना पसंद करते हैं। मैं जब छात्र था तब जाता था, आज भी जाता हूं।