Thursday, April 30, 2009

टोल टैक्स का गोरख-धंधा



परिवहन मंत्रालय टोल टैक्स (चुंगी वसुली) के माध्यम से निजी क्षेत्र की निर्माण कंपनियों को बेहिसाब फायदा पहुंचाने में जुटी है। दिल्ली-गुड़गांव एक्सप्रेस हाईवे पर रोजाना टोल टैक्स के रूप में होने वाली लाखों रुपए की उगाही की जानकारी मिलने पर यह खुलासा हुआ।

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने निजी क्षेत्र की भागीदारी से बीओटी यानी निर्माण, संचालन और स्थानांतरण के तहत दिल्ली-गुड़गांव एक्सप्रेस हाईवे का निर्माण किया है। इस परियोजना को पूरा होने में 702 करोड़ रुपए की लागत आई थी। इन रुपए की उगाही के लिए उक्त परियोजना से जुड़ी निजी कंपनी को सन् 2022 तक चुंगी उगाही का अधिकार दिया गया है।

प्रतिवर्ष गाड़ियों की बढ़ती संख्या और वहां से गुरजने वाली प्रत्येक गाड़ी पर टोल टैक्स में वृद्धि होने से सन् 2022 तक 24,000 करोड़ रुपये की उगाही का अनुमान है। इससे साफ मालूम पड़ता है कि यहां जनता की जरूरतों को नजरअंदाज कर परियोजना से जुड़ी निर्माण कंपनी को 702 करोड़ रुपए के बदले अरबों रुपए का फायदा पहुंचाने की जुगत लगाई गई है। इस बाबत अधिवक्ता विवेक गर्ग ने एनएचएआई के भ्रष्ट अधिकारियों और परिवहन मंत्रालय व इससे जुड़े अन्य संबंधित विभाग के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो(सीबीआई) के निदेशक अश्वनि कुमार के समक्ष शिकायत दर्ज की है।

शिकायत में कहा गया है कि दिल्ली-गुड़गांव एक्सप्रेस हाईवे पर इंदिरा गांधी एयर पोर्ट (14 किमी), गुड़गांव दिल्ली बोर्डर (24 किमी) और खिड़कीदौला (42 किमी) के निकट राहगीरों से चुंगी वसूली जाती है। एनएचएआई की ओर से मुहैया कराए गए आंकड़ों के अनुसार इंदिरा गांधी एयर पोर्ट और खिड़कीदौला के निकट चुंगी के रूप में प्रत्येक महिने 10 करोड़ यानी वर्ष में करीब 130 करोड़ रुपए तक की उगाही होती है। जबकि, गुड़गांव दिल्ली बोर्डर पर होने वाली उगाही की कोई जानकारी नहीं दी गई है। अनुमान है कि यहां से होने वाली उगाही उक्त दोनों स्थानों से दोगुनी है।

ऐसी स्थिति में इस एक्सप्रेस हाईवे पर प्रतिवर्ष 260 करोड़ रुपए की उगाही का अनुमान
है। गर्ग ने बताया कि सूचना का अधिकार कानून का इस्तेमान करने पर एनएचएआई ने इस बात की जानकारी दी कि प्रत्येक वर्ष पहली अप्रैल को चुंगी की दर में संशोधन करने का प्रावधान है। अप्रैल 2008 में इस राशि में कुल 13 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी। इससे गत वर्ष 293.8 करोड़ रुपये की वसूली का अनुमान है।

शिकायक पत्र में इस बात की ओर भी इशारा किया गया है कि प्रतिवर्ष गाड़ियों की बढ़ती संख्या की वजह से चुंगी की उगाही में और भी इजाफा होगा। ऐसे में इस परियोजना में लगी राशि की उगाही वर्ष 2010 तक ब्याज सहित कर ली जाएगी। साथ ही मूलधन के रूप में कम से कम 116.55 करोड़ रुपये का फायदा होगा। इसके बावजूद वर्ष 2022 तक चुंगी वसूलने का अधिकार दिए जाने का औचित्य समझ से परे है।

गर्ग ने बताया कि आरटीआई कानून के तहत देश भर में बीओटी के माध्यम से तैयार हुई परियोजनाओं से टोल टैक्स संबंधित जानकारी मागने पर संबंधित विभाग टालमटोल कर रहा है। इससे पता चलता है कि इसमें बड़े पैमाने पर हेराफेरी हो रही है।

Thursday, April 23, 2009

ख़बर पैदा करने का सही तरीक़ा, وسعت اللہ خان

आज सीएनएन-आईबीएन, एनडीटीवी जैसे ज़िम्मेदार चैनलों समेत बहुत से भारतीय चैनलों पर यह ख़बर चल
रही थी- " नई दिल्ली के इंडियन इटरनेशनल सेंटर में पाकिस्तान के पत्रकारों पर राम सेना के नौजवानों का हमला, हालात पर क़ाबू करने के लिए पुलिस तलब."

मैं भी इस सेमिनार में भाग ले रहे ढाई सौ लोगों में मौजूद था, जो भारत-पाकिस्तान में अंधराष्ट्रभक्ति की सोच बढ़ाने मे मीडिया की भूमिका के मौजू पर जानी-मानी लेखिका अरुंधति राय, हिंदुस्तान टाइम्स के अमित बरुआ, मेल टुडे के भार भूषण और पाकिस्तान के रहीमुल्ला युसुफ़जई और वीना सरवर समेत कई वक्ताओं को सुनने आए थे.

जो वाक़या राई के दाने से पहाड़ बना वह बस इतना था कि रहीमुल्ला युसुफ़जई पाकिस्तानी और हिंदुस्तानी मीडिया के ग़ैर ज़िम्मेदराना रवैए का तुलनात्मक जायज़ा पेश कर रहे थे तो तीन नौजवानों ने पाकिस्तान के बारे में नारा लगाया.

प्रबंधकों ने उनको हाल से बाहर निकाल दिया. बस फिर क्या था जो कैमरे सेमिनार की कार्रवाई फ़िल्मा रहे थे वे सब के सब बाहर आ गए और उन नौजवानों की प्रबंधकों से हल्की-फुल्की हाथापाई को फ़िल्माया और साउंड बाइट के तौर पर उन नौजवानों के इंटरव्यू लिए.

प्रबंधकों ने एहतियात के तौर पर पुलिस के पाँच-छह सिपाहियों को हाल के बाहर खड़ा कर दिया. सेमिनार की कार्रवाई इसके बाद डेढ़ घंटे तक जारी रही. सवाल-जवाब का लंबा सेशन हुआ. ढाई सौ लोगों का लंच हुआ लेकिन चैनलों को मिर्च-मसाला मिल चुका था. इसलिए उनकी नज़र में सेमिनार तो गया भाड़ में, ख़बर यह बनी कि पाकिस्तानी पत्रकारों पर नौजवानों का हमला.

फिर यह ख़बर सरहद पार पाकिस्तानी चैनलों ने भी उठा ली और पेशावर में मेरी बीवी तक भी पहुँच गई. उसने फ़ोन करके कहा, आप ख़ैरियत से तो हैं. कोई चोट तो नहीं लगी. जब मैंने कहा इस वाकए का कोई वजूद ही नहीं है तो कहने लगी आप मेरा दिल रखने के लिए झूठ बोल रहे हैं.

अब मैं यह बात किससे कहूँ कि जिसे कल तक पत्रकारिता कहा जाता था. आज वह बंदर के हाथ का उस्तरा बन चुकी है और ऐसे माहौल में भारत-पाकिस्तान में जिंगोइज़्म यानी कि अंधराष्ट्रभक्ति बढ़ाने में मीडिया की भूमिका की बात करना ऐसा ही है कि अंधे के आगे रोए, अपने नैन खोए.

वुस‌अत उल्लाह ख़ान
15 Apr 09, 02:40 PM

सभार- दीवान(सराय)

Thursday, April 9, 2009

‘तुम न जाने किस जहां में खो गए’


कश्मीर की कली और अमर प्रेम जैसी फिल्मों का निर्देशन करने वाले शक्ति सामंत अब इस दुनिया में नहीं रहे। वे 83 वर्ष के थे।

शक्ति सामंत का नाम उन चंद फिल्म निर्देशकों में गिना जा सकता है, जिन्होंने बॉलीवुड को दिशा प्रदान की। साथ ही साठ और सत्तर के दशक में कुछ ऐसी फिल्में बनाई, जो आने वाले समय में भी मिशाल पेश करेंगी।

हालांकि, यहां से जाना तो सभी को है। किन्तु, फिलहाल उनका जाना एक सपना का टूटने जैसा है। अब कौन है, जो कश्मीर की खिलखिलाती वादियों की सैर कराएगा? शर्मिला टैगोर जैसी बेहतरीन अदाकारा से दर्शकों को रू-ब-रू कराएगा।

उन्होंने हावड़ा ब्रिज, एन इवनिंग इन पेरिस, अराधना' जैसी कई प्रसिद्ध फिल्मों का निर्देशन किया था। यकीनन, ये फिल्में हमें हमेशा उनकी याद दिलाती रहेंगी।

सामंत पर कुछ खास फिर कभी।

Saturday, April 4, 2009

पराठे वाली गली का मजा लीजिए


दिल्ली का मुगलकालीन बाजार, यानी चांदनी चौक। यह इलाका चंद पेचिदां गलियों से घिरा एक बड़ा बाजार है। यहां की पराठे-वाली गली के क्या कहने हैं ! भई, जो भी गली में आया, इसका मुरीद बनकर रह गया।

सन् 1646 में मुगल बादशाह शाहजहां अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली लेकर आए थे। तब चांदनी
चौक आबाद हुआ था। स्थानीय लोगों के मुताबिक पराठे-वाली गली के नाम से मशहूर इस गली का वजूद भी उसी समय आ गया था। लकिन, उन दिनों भी यह गली पराठे-वाली गली के नाम से पहचानी जाती थी, इसका कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं है।

खैर! इस गली के दूसरे मोड़ पर करीब 140 वर्ष पुरानी पीटी गयाप्रसाद शिवचरण नाम की दुकान है। दुकान पर बैठे मनीष शर्मा बताते हैं, हमारे पुरखे आगरा के रहने वाले थे। उन्होंने सन 1872 में इस दुकान को खोला था।

बातचीत के दौरान मालूम हुआ कि उनकी दुकान में पराठा बनाने वाले भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह काम कर रहे हैं। इनके पुरखे भी मनीष के पुरखे के साथ काम किया करते थे। इनका वर्षों का नाता है।

इसके बाजू वाली परांठे की दुकान 1876-77 की है। दुकान से बाहर परांठे का स्वाद लेने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही विद्या ने बताया, मैं अपनी बहन की शादी की मार्केटिंक करने मॉडल टाउन से यहां आई हूं। जब भी चांदनी चौक आने का मौका मिलता है तो पराठे-वाली गली जरूर आती हूं।

भीड़-भाड़ वाली इस गली में बहुत मुमकिन है कि आप बिना कंधे से कंधा टकराए एकाधा गज की दूरी तय कर सकें। इसके बावजूद यहां आने वाले लोगों से पराठे-वाली गली के जो पुराने ताल्लुकात कायम हुए थे, वो अब भी बने हुए हैं।

मनीष बताते हैं कई ऐसे लोग हैं जो पहले अपने पिताजी के साथ यहां पराठा खाने आते थे। अब अपने बच्चों को लेकर पराठा खाने आते हैं। आज नए उग आए बाजारों में खुले बड़े-बड़े रेस्तरां के मुकाबले चांदनी चौक की पराठे-वाली गली का मान है। क्योंकि, नई आधुनिकता से लबरेज माहौल में भी यह गली खांटी देशीपन का आभास कराते हुए देशी ठाठ वाले जायकेदार व्यंजनों का लुत्फ उठाने का भरपूर अवसर देती है। शायद इसलिए लोग समय निकालकर यहां आते हैं।