Tuesday, March 31, 2009

भारत में चुनावों के दौरान अब तक बुलंद हुए नारे-


चुनाव में नारों का बड़ा महत्व होता है। जितना तीखा हो उतनी ही धार पैदा करता है। इस मामले में सीपीआई ने नेहरू युगीन चुनाव में नारा दिया था- “लाल किले पर लाल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान।” उन दिनों जवाहरलाल नेहरू पार्टी और सरकार में अपनी समान पकड़ बना चुके थे। उनके समर्थकों ने नारा दिया- “नेहरू के हाथ मजबूत करो।”

उन दिनों जनसंघ विपक्ष में बैठने वाली कम महत्व वाली पार्टी थी। और इस पार्टी का चुनाव चिन्ह दीपक था। इसलिए कांग्रेसी व्यंग्य के साथ कहा करते थे- “इस दिये में तेल नहीं है, यह देश में कैसे उजाला लाएगी।”

दैनिक समस्यों से कई मुद्दे नारे का रूप लेते रहे हैं। बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई जैसे मुद्दे चुनावी नारों की शक्ल अख्तियार करते रहे हैं। मुलाहिजा फरमाइये- “रोजी-रोटी दे न सके जो वह सरकार निकम्मी है”, “ जो सरकार निकम्मी है उसे हमें बदलना है।” सन 1967 तक साझा चुनाव होते थे इसलिए चुनावी नारों में स्थानीय व प्रांतीय मुद्दों का हावी होना लाजमी था।

सन 1967 में उत्तरप्रदेश में छात्रों ने कुछ ज्यादा ही तीखे चुनावी नारे लगाए। जैसे- “उत्तरप्रदेश में तीन चोर, मुंशी गुप्ता युगलकिशोर। ” उन दिनों छात्र आंदोलन की वजह से कई छात्र जेलों में बंद थे। तब छात्रों ने नारा दिया- “जेल के फाटक टूटेंगे, साथी हमारे छूटेंगे।” पिछड़े वर्ग की आवाज बुलंद करते हुए सोशलिस्ट पार्टी ने नारा दिया- “संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ। ” गोरक्षा आंदोलन को तेज करते हुए जनसंघ ने नारा दिया- “गौ हमारी माता है, देश-धरम का नाता है।”

इंदिरा गांधी के आते-आते बहुत कुछ व्यक्ति केंद्रित हो गया था, तब नारा चुनावी नारा बना- “इंदिरा हटाओ, देश बचाओ।” दूसरी तरफ इंदिरा ने नारा दिया- “वे कहते हैं इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ।” आपात काल के बाद आम चुनाव में नारों का सर्वाधिक जोर रहा। इस दौरान जो आकाश फाडू नारे लगे वे इस प्रकार थे- “सन सतहत्तर की ललकार, दिल्ली में जनता सरकार।” “संपूर्ण क्रांति का नारा है, भावी इतिहास हमारा है।” “फांसी का फंदा टूटेगा, जार्ज हमारा छूटेगा।” “नसबंदी के तीन दलाल, इंदिरा संजय बंसीलाल।”
सन 1980 में कांग्रेस ने नारा दिया- “जात पर न पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर।” इसी चुनाव में इंदिरा के समर्थन में और भी वजनी नारे लगाए- “आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को बुलाएंगे ।” इंदिरा की हत्या के बाद सन 84 में राजीव गांधी के समर्थन में जो नारे लगे वो इस प्रकार थे- “पानी में और आंधी में, विश्वास है राजीव गांधी में।” हालांकि यह विश्वास सन 89 में चूर-चूर हो गया और नारे लगे- “बोफोर्स के दलालों को एक धक्का और दो। ” दूसरी तरफ वीपी सिंह के समर्थन में नारे लगे- “राजा नहीं फकीर है देश की तकदीर है।” इसके जवाब में नारे लगे- “फकीर नहीं राजा है, सीआईए का बाजा है।”

सन 1996 में अटलबिहारी वाजपेयी के पक्ष में नारे लगे-“अबकी बारी अटलबिहारी।” अगले चुनाव यानी सन 2004 में इंडिया साइनिंग का नारा लगा। फिर भी वे चुनाव हार गए। तब कांग्रेस ने नारा दिया था-“कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ।” इस बार कांग्रेसी –“कांग्रेस की पहचान, विकास और निर्माण।” पर ताल ठोक रहे हैं।

कुछ और बुलंद नारे इस प्रकार हैं- “एक शेरनी सब लंगूर, चिकमंगलूर चिकमंगलूर”, “मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम”, “तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार”। और भी है, वह फिर कभी।

सभार- प्रथम प्रवक्ता के संजीव कुमार के सहयोग से।

3 comments:

Zirah said...

बहुत खूब। अच्छा काम किया गया है।

Udan Tashtari said...

अच्छा रोचक संकलन है. आभार.

संगीता पुरी said...

सुंदर संकलन किया है ...