Thursday, May 5, 2011

चलो मोमोज खाएं


यूं तो दिल्ली गोल-गप्पा व चाट-भाजी के लिए मशहूर है। बाकी जो मशहूर हुआ वह तंदूर का पका होता है। पर, इन सब के बीच मोमोज ने कब और कैसे अपनी जगह बना ली ! इस बाबत कुछ भी कहना बड़ा कठिन है। हालांकि, यह तथ्य है कि दिल्ली शहर में मोमोज का फैलाव मॉनेस्ट्री मार्केट से ही हुआ। शहर का यह वही बाजार है जो महाराणा प्रताप अंतरराज्यीय बस अड्डे से थोड़ी दूर यमुना किनारे रिंग रोड पर स्थित है। कहते हैं कि यह बाजार प्रवासियों से ही आबाद हुआ है। तिब्बतियों के लिए तो यह बाजार व्यापार करने की जगह बनी। और इसके साथ-साथ मोमोज इस बाजार का हिस्सा बन गया। अब आलम देखिए दिल्ली के हर बाजार और नुक्कड़ों पर इसकी उपस्थिति दर्ज है, वह संभ्रांत लोगों का खान मार्केट हो या शहादरा का साप्ताहिक बाजार। हर जगह लोग मोमोज को सुर्ख मिर्चदार चटनी के साथ चटकारे लेकर खाते दिख जाते हैं।


मोमोज अरुणाचल प्रदेश के तिब्बत से सटे कमेंग और तवंग जिलों की मोपां और शिरदुप्का जातियों को पसंदीदा व्यंजनों में शामिल है। वहां इसे डम्पलिंग के नाम से भी जाना जाता है। वैसे कुछ लोग इसे चाइनीज डिस का हिस्सा समझते हैं पर यह सही नहीं है। चानइनीज डिम-सम से यह काफी भिन्न है। वैसे भी चाइनीज मोमोज का जन्म शंघाई और बीजिंग में हुआ, जो हिन्दुस्तानी मोमोज के आकार-प्रकार से काफी अलग है। खैर, यह जानना बड़ा रोचक है कि उन ऊंची पहाड़ियों पर पसंद किया जाने वाला ठेठ देशी व्यंजन इन मैदानी इलाकों में कैसे फैल गया? जानकारों की माने तो रोजगार की तालाश में भटके लोगों के साथ ही मोमोज दिल्ली पहुंचा। दिल्ली के भटूरे-छोले और गोल-गप्पे से भरे फुड बाजार में सत्तर के दशक के बाद से मोमोज ने दस्तक दी थी। तिब्बतियों ने ही पहले-पहल मोमोज से हमारा परिचय करवाया। फिर चीनी फूड बनाने वाले खानसामों ने इसे तिब्बती घेरे से निकालकर गली-नुक्कड़ों तक पहुंचा दिया। दिल्ली हाट की शुरुआत के साथ ही नार्थ-ईस्टर्न फूड स्टॉलों की बदौलत मोमोज की लोकप्रियता बढ़ी। दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैम्पस के छात्रों के बीच मोमोज का क्रेज बढ़ाने का श्रेय कमला नगर मार्केट की एक गली में खुले ‘मोमोज प्वाइंट’ को है।

कमला नगर मार्केट में ही मोमोज बेच रहा युवक नाम पूछने पर एकबारगी शर्मा जाता है। पर उसने बताया कि पहले मालवीय नगर स्थित एक रेस्ट्रॉ में काम करता था। लेकिन पिछले 17-18 महीने से यहां मोमोज बेच रहा है। उसकी माने तो नौकरी करने से ज्यादा फायदा अपना मोमोज बेचने में ही है। 26 वर्षीय यह युवक पूर्वोत्तर भारत का रहने वाला है। नोएडा के सेक्टर-2 में मोमोज बेचने वाले दार्जलिंग के एक युवक ने कुछ ऐसी ही बातें कहीं। कभी मजनूं का टिला और मोनेस्ट्री मार्केट में बिकने वाला मोमोज आज सुदूर दक्षिण दिल्ली में स्थित आईआईटी व जेएनयू के आसपास बड़े ठाट से बिक रहा है। इसने रेड़ी-पट्टी से उठकर मॉल में अपनी जगह पक्की कर ली है। एक और बात है। अब जब पूर्वोत्तर या नेपाल से आए लोगों ने रसोईघरों तक अपनी पहुंच बना ली है तो वहां भी मोमोज आबाद है। यकीनन, इसने एक लंबा सफर तय कर लिया है।