
ठीक सौ वर्ष पहले आज ही के दिन क्रांतिकारी मदन लाल ढिंगरा को फांसी दी गई थी। उनपर अंग्रेज अधिकारी कर्जन वैलि को मारने का आरोप था। ढिंगरा का जन्म सन् 1883 में हुआ था और उनके पिता सिविल सर्जन थे।
हालांकि उनका परिवार अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादार था। फिर भी वे अंग्रेजी राज का विरोध करते रहे। अंततः महज 26 वर्ष की उम्र में वतन के लिए शहीद हो गए। आज उनकी शहादत की शताब्दी दिवस पर कम ही लोग उन्हें याद कर रहे हैं। मीडिया भी अपवाद नहीं है। वैसे, द हिन्दू इस मामले में आगे है। इसलिए तो बेहतर है। वेब पत्रकारिता में भी मूल्य की खूब बात होती है। पर, ढिंगरा को भूल गए उसका क्या ?
सरकारी चंपुओं से हम इसकी उम्मीद नहीं कर सकते। अभी तो सब राहुल नाम का चादर ओड़े हैं। ऐसे में दूसरे नौजवान को कैसे याद किया जा सकता है ? शहीद हुए तो अपनी बला से! समझदारी से काम करते तो संभव था सन् 1947 आते-आते प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो जाते।
1 comment:
ब्रिजेश जी!
सादर वन्दे ,
आपने इतनी बड़ी बात इतने छोटे शब्दों में कह दी कि जिसका अर्थ लगाया जाय तो सारे ढोगियों की दाढ़ी में आग लग जायेगी, इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई.
रत्नेश त्रिपाठी
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