Sunday, August 16, 2009

रैगिंग का रोग बड़ा बुरा


देश के तमाम विश्वविद्यालयों में नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो चुका है। पर अदालती लगाम के बावजूद रैगिंग का रोग छूटता नहीं दिख रहा। जेएनयू, डीयू समेत कई प्रतिष्ठित संस्थानों से इसकी शिकायते आई हैं। किरोड़ी मल कॉलेज ‘छात्रावास’ का मामला तो मीडिया में खूब आया।

यह सब तब हो रहा है जब सर्वोच्च न्यायालय ने रैगिंग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। यूजीसी के दिशा-निर्देश पर सभी शिक्षण संस्थान चौकन्ने हैं।

आखिर वजह क्या है ? कुछ लोगों का मानना है कि वे छात्र रैगिंग करते ज्यादा देखे जाते हैं जो खुद रैगिंग का शिकार हो चुके होते हैं। वे अपना गुस्सा निकालने की प्रतीक्षा में रहते हैं और नए छात्रों की रैगिंग करना अपना अधिकार मानते हैं। यह एक प्रकार का मनोरोग है। आप क्या मानते हैं?

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