“डा. मनमोहन सिंह ने लगातार दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शुक्रवार को शपथ लेकर एक बार फिर देश की बागडोर अपने हाथों में थाम ली है। राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने उन्हें पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई। उन्होंने पहले हिन्दी और फिर अंग्रेजी में शपथ ली।
”
इंट्रो की अंतिम पंक्ति काबिलेगौर है। सभी ने सुना-देखा की डा. सिंह ने शपथ के लिए जिस भाषा का उपयोग किया वह अंग्रेजी थी। हिन्दी-अंग्रेजी का मामला न बने इसलिए शायद तान छेड़ा गया कि शपथ लेते समय डा. सिंह ने हिन्दी भाषा का भी प्रयोग किया। अब जिस आम जनता के वास्ते खबर लिखी गई है वही फैसला करे यह खबरनविशी है य़ा फिर शुरू हो गई मख्खनबाजी।
इस पंक्ति के लेखक को खूब याद है कि उक्त एजेंसी में ही एक सही और पुख्ता खबर देने पर उसे क्या कुछ नहीं सुनना पड़ा था। हिन्दी सर्विस के कर्ताधर्ता ने वेबसाइट से खबर तक हटवा दी थी। जबकि वह निर्देशानुसार था। आखिरकार मैंने संस्थान को छोड़ना ही बेहतर समझा था। आज भी उस खबर की एक कॉपी मेरे पास है।
जल्दी ही दोनों खबरों को एक साथ आपके नजर डालूंगा। क्योंकि, सही फैसला तो जनता-जनार्दन के हाथों ही होगा।
6 comments:
इन्तजार करेंगे.
बात सीधी और नाम के साथ होनी चाहिए।
ठीक एक दिन पूर्व ही मीडिया की तरफ से की जा रही मख्खनबाजी के बाबत राजधानी में एक गोष्ठी हुई है। लेकिन खेल अब भी जारी है। दरअसल मीडिया कुछ ऐसे ही लोगों से बदनाम है।
यह खेल शुद्ध रूप से चमचागिरी का है. मनमोहन सिंह को हिंदी आती ही नहीं है तो वो हिन्दी में शपथ कैसे लेंगे . वैसे आपने जिस एजेंसी का ज़िक्र घुमा फिराकर किया है, सुनते हैं उसमे देश के एक बड़े टैक्स चोर पूंजीपति का पैसा लगा है, जिसके पिता को मुलायम सिंह भारत रत्न देने की मांग कर चुके हैं और वो पूंजीपति नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का ख्वाब देख चूका है
यह तो खुन्नस है जाने दो जो हो गया सो हो गया । तुम अभी न गुस्सा थूक नही पाये हो। चलो उनके तरफ से मै तुम्हारी माफी मांगता हूं।
इसमे ग़लत क्या है दोस्त इसी का ज़माना है आप किसी के बारे में सच लिख दिजिये फिर उसका अंजाम देखिये ..सब यही चाहते हैं यही करते है जो अलग चलता उसे एकदम अलग कर देते..आपको धमकी मिलती है यकिन नहीं आता तो मेरे ब्लाग मे पोस्ट लिखने के बाद मुझे टिप्पणी मे धमकी भ मिलने लगी ..
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