Friday, May 1, 2009

राजनाथ सिंह के नाम वीरेंद्र सिंह का पत्र


हाल ही में भाजपा के पूर्व सांसद वीरेंद्र सिंह पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के खिलाफ गाजियाबाद से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतर गए थे। हालांकि, आडवाणी से मुलाकात करने के बाद उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया है। यहां प्रस्तुत है उनकी ओर से राजनाथ सिंह को लिखा गया पत्र-

माननीय अध्यक्ष
भारतीय जनता पार्टी
श्री राजनाथ सिंह
सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र प्रकरण से मेरी आशंका की पुष्टि हुई है। आपसे मैंने बातचीत में कहा था कि आप अगर नहीं चाहेंगे तो मैं चुनाव नहीं लड़ सकूंगा। इसपर आपका अंदाज हमेशा की तरह बुझौवल वाला बना रहा। मैं भाजपा का कार्यकर्ता हूं। विचारों से प्रेरित और निष्ठा से अडिग। एक राजनीतिक कार्यकर्ता के लिए चुनाव का अवसर चुनौती बनकर आता है। इसे आप भी समझते हैं। लोगों की ही इच्छा थी कि मुझे सलेमपुर में तैयारी करनी चाहिए, क्योंकि परिसीमन से जो बदलाव आया है, वह भाजपा के लिए नई राजनीतिक जमीन मुहैया कराता है। यह सोचकर मैं सक्रिय हुआ। हर मतदान केंद्र पर एक मजबूत टीम खड़ी हुई। ऐसे करीब पांच हजार कार्यकर्ताओं को गहरी निराशा हुई है।

उनमें बेचौनी बड़ रही थी। उनके ही आग्रह पर मैं दिल्ली पहुंचा। ताकि अपने सहयोगियों की भावनाओं से पार्टी नेतृत्व को अवगत करा सकूं। मैं नहीं जानता कि इससे पहले कभी भाजपा में ऐसा हुआ है या नहीं कि पार्टी कार्यकर्ता और नीचे से उपर तक नेतृत्व चाहता हो कि पार्टी लड़े। लेकिन जिसे पार्टी ने कुंजी दे रखी है वह तिजोरी भरने के फिराक में पड़ गया। वह व्यक्ति का लठैत बन गया। मेरा मतलब आपसे है। कौन नहीं जानता कि मार्च के मध्य में बलिया के तमाम कोयला डिपो से रुपए की वसूली कर उसे गाड़ियों में भरकर जब दिल्ली भेजा जा रहा था तो जैसे ही इसकी भनक लगी कि कार्यकर्ता बेचैन होने लगे। उन्होंने मुझे दिल्ली में ही बने कहने के लिए कहा ताकि साजिश सफल न हो जब भाजपा के अध्यक्ष पद पर बैठाया गया व्यक्ति जोड़तोड़ और तिकड़म की अपनी आदत पर पहले की ही तरह अमल करता रहे तो उम्मीद बचेगी कैसे? यही आपने मेरे साथ किया।

आपकी अध्यक्षता में उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया अगस्त, 2008 में शुरू होनी थी। तबसे मेरे जैसा कार्यकर्ता रोज इम्तीहान में बैठता था और इम्तीहान टलता रहा। सौदेबाजी होती रही। आखिरकार 23 मार्च, 2009 का वह दिन भी आया जब पूरी चुनाव समिति चाहती थी कि सलेमपुर से भाजपा लड़े। वहां जद (यू) का न अंडा है न बच्चा। आप हैं जिन्होंने चमत्कार दिखाया और सजपा के विधान परिषद सदस्य को रातों-रात जद (यू) का उम्मीदवार बनवा दिया। मरे पास अगर पांच करोड़ रुपया होता तो वह सीट पा लेता। जिसे आपने उम्मीदवार बनवाया है, क्या उसके बारे में यह मालूम है कि हत्या के अभियोग में नाम आने पर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने उससे किसी तरह का संबंध होने से इनकार किया था? क्या आप यह भी जानते हैं कि सन 2006 में जब उसी चंद्रशेखर ने उसे जेपी स्मारक ट्रस्ट का सचिव बनवाया तो मैंने उनसे लोहा लिया। आप यह भी जानते ही होंगे कि चंद्रशेखऱ से मेरे नजदीकी संबंध रहे हैं। फिर भी उसकी परवाह नहीं की। क्योंकि सवाल जेपी से जुड़ी एक सार्वजनिक संस्था का था, जो ऊंचे आदर्शों से प्रेरित होकर बनाई गई थी। जेपी स्मारक ट्रस्ट को एक पारिवारिक जागीर बनाने की लड़ाई मैंने सार्वजनिक जीवन में सीखे पाठ से लडी। यही अभियान पूरे बलिया में राजनीतिक संधर्ष का जनप्रिय मुद्दा बन गया था। जिसमें माफियाकरण के विनाश के बीज थे । क्या आप यह नहीं महसूस करते कि उस अभियान की आपने और जद यू ने हत्या कर दी है। यह राजनीतिक हत्या है। इसका मुकदमा जनता की अदालत में पहुंचना ही चाहिए।

मुझे मालूम है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राज्य सभा सदस्य शिवानंद तिवारी ने जद यू के अध्यक्ष शरद यादव से कहा कि वहां भाजपा के वीरेंद्र सिंह काम कर रहे हैं। उन्हें ही लड़ने का हक मिलना चाहिए। मुझे यह भी मालूम है कि लालकृष्ण आडवाणी ने जब जरूरत पड़ी तब साफ-साफ कहा कि सलेमपुर से वीरेंद्र सिंह का अलावा किसी दूसरे को लड़ाने का कोई तुक नहीं है। और आप हैं जो किसी गहरे द्वेषवश कुछ और ही मन में ठाने हुए थे। उसी तरह जैसे आपके मुख्यमंत्रित्व काल में भदोही-मिर्जापुर उपचुनाव में हुआ।
आपकी अध्यक्षता में भाजपा ने उम्मीदवार चयन का अजीब ढंग अपनाया। सलेमपुर का फैसला अप्रैल में सार्वजनिक किया गया, जब सबकुछ हो गया था। मैंने इसी उम्मीद पर सलेमपुर में नामांकन भरा कि निर्णय मेरे पक्ष में होगा। आपने वैसा होने नहीं दिया। जिसका पूरा विवरण मैं बता सकता हूं। जिसकी जानकारी बलिया और दिल्ली में हर उस व्यक्ति को है जो सलेमपुर में दिलचस्पी रखता है।

अध्यक्ष जी, मैं आपके द्वेष का शिकार हो गया हूं। जहां आप कभी चुनाव नहीं जीत सके, वहीं से मैंने दो बार लोकसभा का चुनाव लोगों की मदद से जीता तो इसमें मेरा क्या कसूर है। यह मैं बता दूं कि सलेमपुर से मुझे लोग जिताकर भेजना चाहते थे। आपने भाजपा की एक सीट गंवा दी। आपकी राजनीतिक पसंद से मुझे कोई हैरानी-परेशानी नहीं है। लोगों को है। जौनपुर में कौन राजनीतिक कार्यकर्ता है जो न जानता होगा कि आपने वहां एक दूसरे दल के उम्मीदवार की मदद में करतब दिखाया। भाजपा और देश का जाग्रत समाज जहां लालकृष्ण आडवाणी में अपना खेवनहार देखता है वहीं उसे यह भी पता हो गया कि उस नाव को डुबोने के लिए आप एक चुहे की भूमिका में उतर आए हैं। लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि भाजपा की नाव पार पा जाएगी। सतत् जागरूकता हमारा स्वभाव जो है।

जहां तक मेरा सवाल है, भाजपा में मेरी नियति है। इससे कोई भी हो, खिलवाड़ नहीं कर सकता। चाहे अध्यक्ष पद पर बैठे आप ही क्यों न हों। मैं समझता हूं कि मेरे साथ घोर अन्याय राजनाथ सिंह ने किया है, भाजपा ने नहीं। ..

कई लोग मानते हैं कि हिन्दुस्तान में पार्टी तंत्र अब व्यक्तितंत्र में बनकर रह चुका है। इसके कई साक्ष्य हैं। नजर दौड़ाएं तो इक-बारगी दिख जाएंगे। ऐसे में भाजपा थोड़ी अलग दिखती है। यहां पार्टी अध्यक्ष के किसी गलत फैसले पर कार्यकर्ता बगावत करते है। इसके बावजूद उन्हें बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जाता। पूर्व सांसद वीरेंद्र सिंह का विरोध इसका प्रमाण है।

सभार- प्रथम प्रवक्ता

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

क्या यह पत्र भाजपा के लिए आईना नहीं है?