Sunday, January 18, 2009

बज्र देहाद का मशहूर किस्सा व फिल्मी गीत


देश की राजनीतिक पार्टियां आम चुनाव की तैयारी में जुटी हैं। रंग-ढंग वही पुराना है। सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र में ज्यादा समय गुजार रहे हैं। चुनाव प्रचार में तकनीक के इस्तेमाल को महत्व दिया जा रहा है।

ऐसे में भागलपुर लोकसभा क्षेत्र में तफरीह करते समय एक किस्सा व कुछ गाने याद आ गए। जिले के बज्र देहाद में एक किस्सा बड़ा मशहूर है। वो यह कि कभी इस इलाके से कांग्रेस पार्टी के कद्दावर व प्रतिष्ठित नेता भागवत झा आजाद सांसद हुआ करते थे। एक मर्तबा वे क्षेत्र में चुनावी दौरा करते हुए चतरी गांव पहुंचे। उस वक्त गांव के एक चौपाल का नजारा विचित्र था। एक व्यक्ति एक आवारा कुत्ते को पट्टे के सहारे खंभे से बांध रखा था। साथ ही कुत्ते की हल्की पिटाई कर रहा था। इस दौरान उक्त व्यक्ति उस वफादार जानवर को विशेषणों से नवाजते हुए पांच साल बाद आने की वजह भी पूछ रहा था।

हालांकि इलाके में आजाद का बड़ा मान था और अब भी है। लेकिन देहाती-दुनिया में फैले इस किस्से व गीतकार गुलजार द्वारा फिल्म आंधी के लिए लिखे कव्वाली - (सलाम कीजिए, आलीजनाब आए हैं। यह पांच सालों का देने हिसाब आए हैं।) को जोड़कर देखने पर ताज्जुब हुआ। फिलहाल मालूम नहीं कि ये कव्वाली इस देहात में पहले सुनाई दी या ये किस्से गुलजार तक पहले पहुंच गए।

खैर! सही जो भी हो। मूल बात यह है कि देश में बढ़ती राजनीतिक चेतना कव्वाली की इस पंक्ति से साफ होती है। आप स्वयं देख लें- (यह वोट देंगे, मगर अबके यूं नहीं देंगे। चुनाव आने दो हम आपसे निबट लेंगे।) यह नराजगी अपने चरम पर पहुंच विद्रोह का शक्ल अख्तियार करने लगी है। इतने बरसों बाद जब कई जमाने पुराने हो गए, नमालूम कितनी चीजें पीछे छूट गईं, मगर गुलजार द्वारा लिखी कव्वाली नई ताजगी व तेवर के साथ सफेद पोशाकी पर फिट बैठती है।

अलबत्ता मेरा ख्याल है कि थोड़ा वक्त और गुजरेगा तो यह कहीं सुबह का लिखा न मालूम पड़े। आखिरकार गीत अपना धर्म कुछ इसी अंदाज में निभाता है। वह अपनी संश्लिष्टता में सिर्फ संकेत देता है। क्रांति की फसल नहीं खड़ी करता, बल्कि बीज बोता है।

ब्रजेश झा

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