Friday, January 16, 2009

गुलाम हैदर होते तो गदगद हो जाते !

यकीनन, संगीतकार ए आर रहमान तारीफ के हकदार हैं। वे जाने-अनजाने इसलिए भी तारीफ के काबिल हैं, क्योंकि उन्होंने गोल्डन ग्लोब पुरस्कार जोतकर संगीतकार गुलाम हैदर को सच्ची श्रद्धांजलि दी है। संभवतः कम लोगों को याद हो कि बीता साल यानी वर्ष 2008 हैदर के जन्म का सौवां साल था।

वे पाकिस्तान (सिंध प्रांत) के हैदराबाद शहर में वर्ष 1908 में पैदा हुए थे। यह ताज्जुब की बात है कि एक ऐसे संगीतकार को लगभग भूला दिया गया है, जिन्होंने फिल्मी संगीत को उसके शुरुआती दिनों में बड़े यतन से तैयार किया था। कुछ फिल्मी पत्रकार बड़े सिनेड़ी बने फिरते हैं ! लेकिन, हैदर पर भी एक गंभीर रपट आती, तो बात बनती।

हालांकि, इस गुनाह का भागी मैं खुद भी हूं। पर, अपराध-बोध कुछ कम है। क्योंकि, संपादक की आज्ञा और न्यूज रूम के कायदे ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया था। खैर ! यह रोचक कहानी है। इसपर अगली दफा।

फिल्म निर्माता कारदार ने हैदर को वर्ष 1932 में बन रही फिल्म- ´स्वर्ग की सीढ़ी´ में संगीत देने को कहा था। वैसे यह फिल्म ज्यादा चली नहीं थी। शायद याद हो कि इसी वर्ष हिन्दोस्तानी सिनेमा आवाज की दुनिया में दाखिल हुआ था। वर्ष 1941 में फिल्म-खजांची प्रदर्शित हुई। इससे हैदर का बड़ा नाम हुआ।

फिल्मी संगीत को मजबूत आधार देने के लिए उन्होंने शुरुआती दिनों में कुछ अनुठे काम किए। पहला यह कि राजदरबार के कुशल साजिन्दों को इकट्ठा कर एक वादक समूह का निर्माण किया। इसमें पटियाला के उस्ताद फतेहअली खान व सोनीखान नाम के प्रख्यात क्लेरोनेट वादक भी शामिल थे। साथ ही गीतों में कई प्रयोग किए। मसलन उसमें आने वाले अंतरों का तरीका बदल डाला।

पिछले दिनों जब मुंबई पर आतंकी हमले हुए तो कई लोगों को एक गीत खूब याद आया, ´´वतन की राह में वतन के नौजवां शहीद हो....´´। पर इस गीत के संगीतकार को भी किसी ने याद किया हो यह नजर नहीं आया। फिल्म- शहीद (1948) के इस गीत को हैदर ने ही संगीतबद्ध किया था।

जानकार कहते हैं कि हैदर ने बालीवुड में संगीतकारों का खूब मान बढ़ाया। संगीत की उसी निर्मल धारा में बहकर रहमान ने ठीक सौ साल बाद अपनी प्रयोगधर्मिता व हुनर के बूते दुनिया में बालीवुड के संगीतकारों का दर्जा ऊंचा उठा दिया। लोगों को यह मानने पर मजबूर कर दिया कि बालीवुड का संगीतकार भी सर्वश्रेष्ठ की श्रेणी में है। हालांकि, हैदर को गुजरे जमाना हो गया। लेकिन, आज यदि वे होते तो गदगद हो जाते।

ब्रजेश झा।

3 comments:

विधुल्लता said...

..भाई ब्रजेश जी धन्यवाद ...इतनी महत्व पूर्ण जानकारी के लिए..हैदर जी को शर्धांजलि,और रहमान जी को बधाई ...आपने कहा है की मुंबई हमले के समय बहुत से लोगों को ...वतन की राह मैं ....गीत खूब याद आया..लेकिन संगीतकार का नाम किसी ने नही लिया...कहना चाहती हूँ ..किसी नेभी इस गीत के संगीत कार तो क्या ,गीत का ही नाम लिया हो...मैंने अपनी पोस्ट पर जरूर इन्ही पंक्तियों के शीर्षक से लिखा है और जानकारी भी मांगी थी ---कोई जवाब आज तक नही मिला ..देश भक्ति के गहरी कशिश वाले गीत की मुझे तलाश भी है ...रफी की आवाज़ मैं ..चाहें तो ओल्डर पोस्ट पर जाकर पढ़े ...ताना-बाना.ब्लागस्पाट.कॉम धन्यवाद

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

bhaiya,
Namste.
aapka post padha, kaee bataen yaad aayee. ye panktee-
हालांकि, इस गुनाह का भागी मैं खुद भी हूं। पर, अपराध-बोध कुछ कम है। क्योंकि, संपादक की आज्ञा और न्यूज रूम के कायदे ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया था। खैर ! यह रोचक कहानी है। इसपर अगली दफा।
ise kabheee post par batyege..

Cheers.

KAUSHAL said...

बहुत खूब ब्रजेश जी. ए. आर रहमान की उपलब्धि के उजियारे में आपका भुला दिए गए गुलाम हैदर को याद करना बहुत अच्छा लगा. सच कहूं तो इसने दिल को काफी सुकून दिया. सिर्फ उगते सूरज को सलाम किये जाने वाले आज के इस दौड़ में डूब गए सूरज (गुलाम हैदर) को याद रखना एक बड़ी खासियत है. आप अपनी इस खासियत को बरक़रार रख पायें यही दुआ है.