कैलाशचंद्र पंत को देखकर मालूम होता है कि द्विवेदी युगीन परंपरा अभी जीवित है। जहां लोग अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव से चिंतित भर हैं, वहीं पंत ने राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार का जिम्मा उठाया। उन्होंने कई प्रयोग किए और नई राह का निर्माण भी किया है। वे अब जीवन के 75वें साल में प्रवेश कर गए हैं। पर, उम्र उनपर हावी नहीं। कुछ नया करने की ललक उनमें बच्चों जैसी है। सामाजिक गतिविधियों में उनकी सक्रियता नौजवानों के लिए एक नजीर है। पंत की यही विशिष्टता उन्हें अपने समकालीनों से अलग करती है।
वे पहले व्याख्याता थे। फिर प्राचार्य हुए। बाद में उदयपुर जाकर प्रकाशन का भी काम देखा। लेकिन, उनका मन रमा पत्रकारिता और समाजिक गतिविधियों में आकर। गत चार दशकों से पंत हिन्दी की दुनिया से जुड़े हुए हैं। पहले दैनिक अखबारों से जुड़े, फिर साप्ताहिक और मासिक पत्रिका का जिम्मा संभाला। अब द्वैमासिक पत्रिका ‘अक्षर’ का संपादन कर रहे हैं। इस पत्रकारीय सफर के साथ राष्ट्रभाषा हिन्दी के लिए जो काम उन्होंने किया, वह एक अनूठी लगन व परिश्रम का ही परिणाम है। भोपाल का हिन्दी भवन राष्ट्रभाषा प्रेम को लेकर उनकी निष्ठा व संगठन कौशल का प्रतीक माना जा सकता है।
वैसे तो यह रिवाज चल पड़ा है कि अब इन कामों के लिए लोग सरकार का मुंह ताकते हैं, पर पंत ने अलग रास्ता चुना। उन्होंने लोगों को जोड़ा और चुनौती मानकर कई बड़े काम किए। भोपाल में हिन्दी भवन का विस्तार किया, इसी शहर में किसान भवन का निर्माण कराया इस सूची में कई दूसरे कार्य भी शामिल हैं। वे लगातार राष्ट्रभाषा और संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय रहे, लेकिन कभी सरकारी सहयोग मांगना जरूरी नहीं समझा।
वे कहते हैं, “हम अपनी भाषा और संस्कृति से जुड़कर ही अपने संस्कारों से जुड़े रह सकते हैं। हम अंग्रेजियत और अंग्रेजों को कोसते तो हैं, पर उनका अनुकरण भी करते हैं। यह समय आत्महीनता से मुक्त होने का है।” मालवा के महू में जन्मे कैलाशचंद्र पंत को चाहने वाले आज देश के सुदूर इलाकों में फैले हुए हैं। शायद यही वजह है कि जब वे 75 वर्ष के हुए तो उनके अमृत महोत्सव वर्ष मनाने की चर्चा चल पड़ी। गत 26 अप्रैल को महू में उनके 75वें जन्मदिन पर इसकी शुरुआत हो चुकी है। इस श्रृंखला का दूसरा समारोह गत 24 जुलाई को गांधी शांति प्रतिष्ठान में मनाया गया।
1 comment:
वे लोग ही कुछ कर रहे हैं जो बिना किसी प्रचार के अपने काम में योजनाबद्ध तरीके से लगे हुए हैं।
हिन्दी विकिपिडिया पर पन्त जी के बारे में बहुत काम जानकारी है। इसे पूरा करिये न!
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