Wednesday, October 5, 2011

विवादों में घिरा ज्ञान केंद्र




























“मुझे संदेह है कि नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति हो गई है ? इस सवाल के जवाब में विदेश राज्य मंत्री ई अहमद ने कहा- नहीं।“ यह सवाल-जवाब राज्यसभा की 25 अगस्त, 2011 की कार्यवाही का हिस्सा है। क्या है कि “सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना।” नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय (एनआईयू) का सपना देखने वालों को पाश की यह पंक्ति रह-रहकर याद आ रही है। वे सवाल कर रहे हैं कि डॉ. गोपा सब्बरवाल कौन है? वे यह भी जानना चाहते हैं कि शांति, ध्यान और सादगी की परंपरा वाला प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय अब किस नई बुनियाद पर खड़ा हो रहा है?
ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके सपनों का यह ज्ञान केंद्र फिलहाल सवालों से घिरा है।

इस महत्वाकांक्षी विश्वविद्यालय के पहले उप-कुलपति के बतौर डॉ.गोपा सब्बरवाल की नियुक्ति विवाद का मुख्य कारण है। पिछले दिनों पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने जब इस विश्वविद्यालय से स्वयं को पूरी तरह अलग कर लिया तो मामला और तूल पकड़ा। परियोजना को लेकर संदेह गहरा हुआ है। इस दौरान छानबीन के बाद जो दस्तावेज प्रथम प्रवक्ता के पास आए हैं वे दूसरी कहानी कह रहे हैं। इसके अनुसार विदेश मंत्रालय की तरफ से 9 सितंबर, 2010 को एक पत्र डॉ. गोपा सब्बरवाल को भेजा गया था। वह पत्र संख्या- s/321/10/2009(p) है। इस पत्र के अनुसार एनआईयू के मेंटर ग्रुप यानी सलाहकार मंडल की तरफ से डॉ.गोपा सब्बरवाल को नालंदा विश्वविद्यालय का उप-कुलपति नियुक्त किया गया है। साथ ही उनकी पगार 5,06,513 रुपए प्रति माह तय की गई है। दिल्ली के जोर बाग स्थित उनके घर पर जो सरकारी टेलीफोन लगा है वह भी एनआईयू के उप-कुलपति के नाम है। अब यह नियुक्ति कई सवाल खड़े कर रही है। क्योंकि भारत का राजपत्र इस बात की तसदीक करता है कि 25 नवंबर, 2010 से ‘नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010’ लागू होता है, लेकिन विदेश मंत्रालय के पत्र से पता चलता है कि डॉ.सब्बरवाल की नियुक्ति इसके 24 दिन पहले ही कर दी गई थी। आखिर यह सब कैसे हुआ लोग जानना चाहते हैं।


इतना ही नहीं नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 (15.1)के अनुसार विश्वविद्यालय के उप-कुलपति की नियुक्ति का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति या इनके द्वारा नियुक्त विजिटर के पास है, लेकिन एनआईयू की सलाहकार मंडल ने इस भूमिका को किस आधार पर निभाया। यह भी समझ से परे है। इतना ही नहीं, अधिनियम में यह भी कहा गया है कि विश्वविद्यालय अपना मुख्यालय बिहार के नालंदा में ही खोलेगा। पर, दिल्ली स्थित आरके पुरम में आईबीसी बिल्डिंग में 22 जनवरी,2011 से नालंदा विश्वविद्यालय का कार्यालय चल रहा है। इसे विश्वविद्यालय ने 2,47,500 रुपए मासिक किराए पर लिया है। सूचना के अधिकार कानून से मिली जानकारी इन बातों की तसदीक करते हैं। हालांकि कुछ ऐसी सूचनाएं भी दी गई हैं जिससे साफ होता है कि वे तथ्य को छुपाने की कोशिश में है। एक सवाल के जवाब में कहा गया है कि मेंटर ग्रुप के लिए अपनी रिपोर्ट पेश करने के वास्ते कोई समय-सीमा तय नहीं की गई थी। वहीं दूसरे कागजात इसकी पुष्टि करते हैं कि इसके लिए नौ महीने का समय तय किया गया था। हालांकि ‘प्रथम प्रवक्ता’ यह पहले भी अपने पाठकों को इस बताता रहा है।

गौरतलब है कि पहली बार एनआईयू की कल्पना 1996 में जॉर्ज फर्नांडीस ने की थी। तब नालंदा अवशेष के निकट एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि वे इस महान संस्था को पुनर्जीवित करने का जिम्मा लेते हैं। पर वे इसमें सफल नहीं हो पाए। इसके बाद मार्च, 2006 में तात्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी बिहार यात्रा के दौरान नालंदा में एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के होने की वकालत की। उन्होंने कहा कि यहां विज्ञान, तकनीक, अर्थशास्त्र और आध्यात्म से जुड़े दर्शन पर प्राचीन और आधुनिक संदर्भ में विस्तृत अध्ययन का केंद्र बनाया जाए। तब विदेशों से भी नालंदा के पुनरुत्थान के वास्ते सहयोग को लेकर जोरदार पहल की बात चल रही थी। इसके लिए सिंगापुर और जापान समेत कई देश आगे आकर सहयोग देने को तैयार थे। बिहार सरकार भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थी। फरवरी, 2006 में तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा की अगुवाई में दिल्ली में भी एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इन सब के बीच एनआईयू की कल्पना को साकार करने के लिए भारत सरकार ने मई, 2007 में नोबल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री प्रोफेसर अमर्त्य सेन की अध्यक्षता में एक मेंटर ग्रुप का गठन किया। इस ग्रुप से कहा गया था कि वह उच्च कोटि के अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए तमाम पहलुओं पर विचार कर एक प्रारूप पेश करे। इसके लिए उसे नौ महीने का समय दिया गया था, पर वह लगातार टलता रहा। दो साल बाद भी उक्त रिपोर्ट को पेश नहीं किया जा सका था।

हालांकि, 13-15 जुलाई, 2007 को मेंटर ग्रुप की पहली बैठक सिंगापुर में हुई। इस बैठक में सहयोग के लिए मेंटर ग्रुप ने एक 19 सदस्यीय सलाहकार समिति का गठन किया। इसमें केवल दो भारतीय शामिल किए गए, जिसमें एक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पुत्री व दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर उपिंदर सिंह थीं और दूसरी उनकी अभिन्न सहेली प्रोफेसर नयनजोत लाहिरी। नयनजोत लाहिरी भी दिल्ली विश्वविद्यालय में ही प्रोफेसर हैं। बाद में कायदे-कानून को बगल कर जिस गोपा सब्बरवाल को नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का उप-कुलपति बनाया गया है वह भी दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज में समाजशास्त्र की रीडर रही हैं। कहा जाता है कि इन तीनों के बीच पुरानी और गहरी जान-पहचान है। तो क्या यह संबंधों का तोहफा है? और यह सहेलियों का विश्वविद्यालय बनने जा रहा है ? लोग यही सवाल पूछ रहे हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अनुसार भी किसी विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर प्रोफेसर की ही नियुक्ति हो सकती है। डॉ.सब्बरवाल तो प्रोफेसर से नीचे रीडर ही हैं। इतना ही नहीं एनआईयू से संबंधित अधिनियम को राष्ट्रपति की मंजूरी 21 सितंबर, 2010 को मिली थी, लेकिन इससे पहले ही 9 सितंबर, 2010 को उनकी कुलपति पद पर नियुक्ति हो गई। आखिर यह कैसे संभव हुआ। यही नहीं, कहा तो यह भी जाता है कि बतौर कुलपति डॉ. सब्बरवाल ने एसोसियेट प्रोफेसर अंजना शर्मा को एनआईयू का विशेष कार्य पदाधिकारी (ओएसडी) नियुक्त करवाया है। उनकी पगार 3,29,936 रुपए प्रति माह है।
उप-कुलपति समेत विश्वविद्यालय में नियुक्त अन्य कमर्चारियों का विवरण

इन सवालों से घिरी डॉ.सब्बरवाल ने एक बयान में कहा है कि प्रोफेसर अमर्त्य सेन की अध्यक्षता वाली सलाहकार मंडल ने मुझे योग्य पाकर ही इस पद के लिए चुना है। वैसे इस पद के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित योग्यता जैसी कोई शर्त एनआईयू पर लागू नहीं होती, क्योंकि एक साल पहले केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए एक अलग कानून के तहत इस विश्वविद्यालय का गठन हुआ है। अपने बयान में उन्होंने यह भी कहा है कि डॉक्टर कलाम प्रोफेसर अमर्त्य सेन के अनुरोध के बावजूद एनआईयू का प्रथम विजिटर पद स्वीकारने को तैयार नहीं हुए थे। खबर है कि फिलहाल डॉक्टर सब्बरवाल अक्टूबर के तीसरे सप्ताह अमेरिका जाने की तैयारी कर रही हैं। उनकी योजना अमेरिका में ‘पारिस्थितिकी स्कूल’ के बाबत जानकारी एकत्र करने की है, जिसका उपयोग वह एनआईयू के लिए करेंगी। 22 सितंबर को अमेरिका के न्यूयार्क शहर में एशिया सोसाइटी के एक कार्यक्रम में प्रोफेसर अमर्त्य सेन का 45 मिनट का भाषण हुआ। इस दौरान वे उप-कुलपति की नियुक्ति पर कुछ भी कहने से बचते रहे। हालांकि, बिहार सरकार की खूब तारीफ की। गौरतलब है कि इस महत्वाकांक्षी विश्वविद्यालय के लिए बिहार की नीतीश सरकार ने 446 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई हैं।

खैर, एनआईयू में नियुक्ति को लेकर ही नहीं, बल्कि पुनर्स्थापना को लेकर भी सैद्धांतिक भेद दिख रहे हैं। सोसाइटी फॉर एशिया इंटिग्रेशन (एसएआई) का कहना है कि प्रस्तावित बिल में नालंदा विश्वविद्यालय का उद्देश्य प्राचीन नालंदा विरासत को पुनर्स्थापित करना दर्ज है, लेकिन जो स्कूल स्थापित किया जा रहा है उसकी नालंदा परंपरा से अनभिज्ञता साफ दिख रही है। नालंदा रसायनशास्त्र, चिकित्सा, खगोल विज्ञान, धातु विज्ञान, गणित जैसे गैर धार्मिक वैज्ञानिक विषयों का शोध केंद्र भी था। परंतु मेंटर ग्रुप की अनुशंसा में विज्ञान से जुड़े किसी विषय पर अध्ययन का कोई प्रावधान ही नहीं है। मेंटर ग्रुप के अध्यक्ष को कटघरे में लेते हुए एसएआई के अध्यक्ष कहते हैं कि नालंदा परंपरा की खोज के लिए उस व्यक्ति को चुना गया जिनकी धारा, समझ और जीवनशैली बिल्कुल उलट है। नालंदा में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए सार्वजनिक वाद-विवाद की प्रथा थी। यह परंपरा प्रजातांत्रिक और पारदर्शी थी। यहां सब उलट-पुलटा दिखाई पड़ रहा है। बतौर उप-कुलपति डॉ.सब्बरवाल की नियुक्ति ही इसका बड़ा प्रमाण है।

एनआईयू के गठन को लेकर मेंटर ग्रुप की लेट-लतीफी से परेशान होकर इसके निर्माण में सहयोग देने को आगे आए कई देश अब पीछे हटते दिख रहे हैं। शुरू-शुरू में सिंगापुर और जापान इस परियोजना को लेकर काफी उत्साही था। वे एशिया महाद्वीप की एकता के व्यापक लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए बौद्ध विरासत और साक्षा एशियाई परंपरा को मजबूत करना चाहते थे। पर ऐसा लगता है कि मेंटर ग्रुप की कार्यशैली ने इन सब चीजों पर पानी फेर दिया है।

बॉक्स-
इन स्थानों पर हुई मेंटर ग्रुप की बैठक। साथ ही खर्च हुए रुपए का विवरण

पहली बैठक- सिंगापुर (13-15 जुलाई, 2007)- 30,92,548.00 रुपए
दूसरी बैठक- टोक्यो (14-16 दिसंबर, 2007) 38,88,243.00 रुपए
तीसरी बैठक- न्यूयार्क (2-3 मई, 2008) 56,05,010.00 रुपए
चौथी बैठक- नई दिल्ली (12-13 अगस्त, 2008) 16,04,190.00 रुपए
अंतिम बैठक- गया (28-29 फरवरी, 2009) 29,23,012.00 रुपए

2 comments:

Babloo Chaudhary said...

very nice article Mr. Brajesh, I came to know the details behind the issue and got curious to know how will it go forward...
new law can be made to benefit certain people... its nothing new in our country...

p raj singh said...

came to know everything about the mess being created in the name of revival of NIU. thanks a lot.