Friday, July 13, 2007

भगैत (भगत) आप जानते हैं.......



कोसी का इलाका यदि बाढ़ और बालू से अभिशप्त है तो यकीन मानिए यहां कुछऐसा भी है, जिसे देख और सुनकर आप मस्ती के आलम में झूम सकते हैं। तो चलिए, आपको ले चलते हैं कोसी के उन गावों में जहां आप रंग-बिरंगे,चटकीले, मस्ताने या फिर गोसाईं जैसै गीतों का लुत्फ उठा सकें...।फणीश्वर नाथ रेणु ने तो अपनी कृतियों ऐसे लोकगीतों को खूब उकेरा है।

रेणुके शब्दों में "ऐसे कईगीतों को सुनते समय "देहातीत" सुख का परस सा पायाहै और देह यंत्र मे "रामुरा झिं झिं" बजने लगता है .......।"

"विदापत-नाच" हो या फिर "भगैत" (भगत), आज भी यहां मौजूद है। विदापत-नाचतो अब केवल सहरसा जिले में सिमट गया है लेकिन "भगैत" (भगत) आज भी कोसीके तकरीबन सभी जिलों में खूब गाया और बांचा जाता है। दरअसल भगैत (भगत) एकऐसा लोकगीत है, जिसमें गीत के संग-संग डॉयलॉग भी चलता रहता है। कहानी केफार्म में गायक अपने दल के साथ भगैत (भगत) गाता है। इसे सुनने के लिएझुंड के झुंड लोग उस जगह जमा होते हैं जहां भगैत होता है। 10 से 11 लोगोंकी एक टीम होती है जो भगैत गाते हैं। टीम के प्रमुख को "मूलगैन" कहतेहैं। अर्थात मूल गायक...। मूलगैन कहानी प्रारंभ करता है और फिर समां बंधजाता है। हारमोनियम और ढ़ोलक वातावरण में रस का संचार करते हैं। दाताधर्मराज, कालीदास, राजा चैयां और गुरू ज्योति, भगैत के मुख्य पात्र होतेहैं। ये पात्र तो हिन्दू के लिए होते हैं। मुसलमानों के लिए "मीरा साहेब" प्रमुख पात्र माने जाते हैं। मुस्लिम के लिए होने वाले भगैत को "मीरन"कहा जाता है।

यहां बोली जाने वाली ठेठ मैथिली में भगैत और मीरन गाया जाता है। गौर करनेलायक बात यह है कि इस कथा-गीत में अंधविश्वास सर-चढ़कर बोलता है। मसलनमूलगैन पर भगवान आ जाते हैं। वह जो कुछ बोल रहा है, वह ईश्वर-वाणी समझीजाती इस कार्यक्रम बलि-प्रथा और मदिरा की खूब मांग होती है।48 घंटे तक अनवरत चलने वाले इस कार्यक्रम का आयोजन अक्सर गांव के बड़ेभू-पति हीं करते हैं। क्योंकि इसके आयोजन में अच्छा-खासा खर्च होता है।अक्सर फसल कटने के बाद हीं ऐसे आयोजन होते हैं। क्योंकि उस वक्त किसान केपास अनाज और पैसे कुछ आ ही जाते हैं। हाल ही मैं पूर्णिया जिला के धमदाहामें "भगत-महासम्मेलन" का आयोजन हुआ था। कोसी के अलावा अन्य जिलों से भीकलाकार इस सम्मेलन में पहुंचे थे। किन्तु जिस उत्साह से कोसी में भगैत कोमंच मिलता आया है,वह अन्य जगहों में नहीं दिखता है। किसानों के बीच इसकेलोकप्रिय होने का मुख्य कारण यह है कि यहां के गावों में अंधविश्वास काबोलबाला आज भी काफी है।

वैसे जो भी हो, भगैत एक कला के रूप में अलग हीं दुनिया में बसता है। यहांके लोग-बाग में यह रच-बस गया है।

मूलगैन (मूल गायक-टीम लीडर) कहता है न-

" हे हो... घोड़ा हंसराज आवे छै............

गांव में मचते तबाही हो...............

कहॅ मिली क गुरू ज्योति क जय....."


हिन्दी अनुवाद-

( सुनो सभी, घोड़ा हंसराज आने वाला है,गांव में मचेगी अब तबाही,सब मिलकर कहो गुरू ज्योति की जय )

साभार- अनुभव www.anubahw.blogspot.com

No comments: