Wednesday, August 17, 2011

डीयू से निकला रैला, अब अन्ना नहीं अकेला


दोपहर होते-होत छत्रशाल स्टेडियम के आस-पास हजारों लोग इकट्ठा हो चुके थे। वहां माहौल ठीक वैसा ही था, जैसा 8 अप्रैल को जंतर मंतर पर दिखा था। नारे लग रहे थे- “जबतक भ्रष्टाचारियों के हाथ में सत्ता है। तबतक कैसे मेरा भारत महान है।“ कुछ छात्र पर्चा दिखा रहे थे, उसपर लिखा था- “डीयू से निकला रैला। अन्ना नहीं है अब अकेला।“ साथ-साथ एक और नारे लग रहे थे- “सोनिया गांधी निकम्मी है। भ्रष्टाचारियों की मम्मी है।” इतना ही नहीं था। आगे भी वे कह रहे थे- “सरकारी लोकपाल धोखा है। अभी भी बचा लो मौका है।“

छत्रशाल स्टेडियम से दीवार पर एक छात्र पट्टी लिए खड़ा था। उसपर लिखा था-“बेइमानी का तख्त हटाना है, भ्रष्टाचार मिटाना है।” इसी नारे के ठीक नीचे लिखा था- “यह कैसा स्वराज्य है, जहां भ्रष्टाचारियों के सिर पर ताज है।” नारे और भी थे जो वहां की फिजाओं में गूंज रहे थे। तभी स्टेडियम के भीतर से बुलाते हुए एक व्यक्ति ने कहा, “भाई साहब यहां पीने का पानी तक नहीं है। पुलिस सुबह 09.20 में यहां लाई है, लेकिन स्टेडियम में पानी की कोई व्यवस्था नहीं है।”

दोपहर 1.50 तब भीड़ इतनी बढ़ गई की पुलिस को स्टेडियम के गेट खोलने पड़े। हालांकि, पुलिस इस कोशिश में लगी थी कि अधिक से अधिक लोग स्टेडियम के भीतर आ जाएं। पर वह इस काम को पूरा करने में असफल रही। विश्वविद्यालय व निकटवर्ती इलाकों से छात्रों का हुजूम एक-एक कर पहुंच रहा था। शाम तीन बजे तक करीब 10-12 हजार लोगों की भीड़ जमा हो गई थी। इस भीड़ में हिन्दु कॉलेज के प्राध्यापक रतन लाल भी दिखे। वे नारा लगा रहे थे- “हिंदु-मुश्लिम-सिख-ईसाई। भ्रष्टाचारियों ने इन सब को खाई।।“ पास ही खड़े संदीप ने बताया कि वे अन्ना के कहने पर सात दिन की छुट्टी लेकर आए हैं। अंकिता प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका हैं। यहां अन्ना के समर्थन में आई हैं। साथ खड़े एक छात्र के हाथ में पोस्टर है। उसपर लिखा है- “शहीदो हम शर्मिंदा हैं। भ्रष्टाचारी जिंदा हैं।”

बेबस पुलिस के चेहरे पर तब हंसी की रेखा दिख रही थी जब नारे लग रहे थे- “ये अंदर की बात है, पुलिस हमारे साथ है।” सैकडों की संख्या में खड़ी पुलिस उन लड़कों को संभालने में असमर्थ थी जो नारे लगा रहे थे- “अन्ना से तुम डरते हो। पुलिस को आगे करते हो।”

शाम 3.10 पर स्टेडियम के दोनों तरफ के रास्ते जाम हो गए। पर प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने ही उस जाम को नियंत्रित करने में पुलिस का सहयोग दिया। कुछ छात्र सफाई काम में भी लगे थे। वे 17 अगस्त की सुबह भी सफाई करते दिखे। सड़क पर बिखरी हुई बोतलें उठा-उठाकर कुडेदान में डाल रहे थे। अब देखना यह है कि बल पकड़ता यह आंदोलन किस दिशा में बढ़ता है। हालांकि, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह संसद में इस मसले पर अपना मत रख चुके हैं। पर उनकी बात से आवाम सहमत नहीं दिख रही हैं। वह अब भी सड़क पर है।

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