कई लोगों का मानना है कि मीना कुमारी की मौत ने ही ‘पाकीजा’ को जीवन और यश प्रदान किया। हालांकि, इस बात को कमाल अमरोही ने कभी स्वीकार नहीं किया। यह फिल्म सन् 1972 के पहले महीने में आई थी। जबकि इसे दिसंबर 1971 में ही प्रदर्शित होना था। लेकिन, भारत-पाक युद्ध की वजह से आठ सप्ताह बाद इसे रिजील किया गया। खैर !
इस फिल्म के तैयार होने की प्रक्रिया तो और भी पुरानी है। वैसे, यह फिल्म अपने संगीत और संवाद के लिए आज भी खूब जानी जाती है।
इसका संगीत गुलाम मोहम्मद ने तैयार किया था। उन्होंने ‘चलो दिलदार चलो’, ‘आज हम अपनी, निगाहों का असर देखेंगे’, ‘थाड़े रहियो’ जैसे खूबसूरत गीत तैयार किए। इन गीतों में राजस्थानी मांड की बंदिश साफ समझ में आती है।
वैसे, नौशाद की माने तो इस फिल्म के तीन गीत यानी- ‘इन्हीं लोगों ने’, ‘चलते-चलते’ और ‘मौसम है आशिकान’ की बंदिश उन्होंने ही गुलाम मोहम्मद के लिए की थी। जो भी हो। ये सारे गीत अब भी खूब सुने जाते हैं। लेकिन, इन गीतों के मशहूर होने से पहले ही गुलाम मोहम्मद इस दुनिया को छोड़ गए।
फिल्मी दुनिया के कई पुराने इमानदार लोगों को आज भी इस बात का मलाल है कि गुलाम मोहम्मद नाम के शख्स को कभी उनके जीते-जी अपनी प्रतिभा का वाजिब सम्मान नहीं मिला।
हां, इस फिल्म को संवाद के लिए भी जाना जाता है। दो संवाद आज भी खूब याद आते हैं। रेलगाड़ी की सीटी के बीच, फिल्म का नायक बोल पड़ता है - ‘आपके पांव देखे...।’ दूसरा संवाद- ‘अफसोस, लोग दूध से भी जल जाया करते हैं।’ इस दुनिया का भी गजब रिवाज है, लोग जिंदा होते हैं तो ढेला समझते हैं। छोड़ जाते हैं, तब सम्मान करते हैं।
4 comments:
फिल्म पाकीजा के गीत से सभी पसंद करते हैं, लेकिन गुलाम मोहम्मद को जानने वाले कम लोग हैं।
yah filma bahut kaarano se bhi anokha tha ....aaj ki bhi pidhi bhi pasand karati hai is film ko
पाकीजा का गीत भी सुनाते तो अच्छा रहता।
aap to aankh milaate huye sharmate hain/ aap to dil ke dhadkne se bhee dar jaate hain
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