Tuesday, June 9, 2009

झुमरी तिलैया और न्यूज रूम


जब कभी फिल्म पर कुछ लिखता या नकलचेपी करता हूं तो एक बात खूब याद आती है। और हंसी भी। तब मैं एक निजी समाचार एजेंसी में था। मैनें झुमरी तिलैया में रहने वाले फिल्मी गीतों के कदरदानों पर एक स्टोरी बनाई। स्टोरी को कायदे से सुबह चलाया जाना था।

दोपहर को जब मैं दफ्तर पहुंचा तो किसी ने बताया स्टोरी नहीं चलाई गई है। डेस्क इंचार्ज के आदेश पर उसे एक सहयोगी एडिट कर रहे हैं। मेरा मानना है कि स्टोरी हमेशा बेहतर बनाने के लिए ही एडिट होती है। जलील करने के लिए नहीं। खैर! एडिट हुई। चली। इसके बाद शिफ्ट संभाल रहीं महिला डेस्क इंचार्ज ने न्यूज रूम में बैठे सभी साथियों को सुनाते हुए कहा, “कॉपी काफी अच्छे तरीके से एडिट की गई है। अब इस कॉपी में जान सी आ गई है।”
यह सुनने के बाद मुझे अपनी स्टोरी को पढ़ने की इच्छा हुई। मैंने अक्षर-सह मिलान किया। पाया कि साढ़े तीन सौ शब्द की स्टोरी में केवल एक ‘झारखंड’ शब्द जोड़ा गया है। तब समझ में आया कि यही जान है। थोड़ी देर बाद उक्त सहयोगी मेरे पास आए। कहा कि मैडम ने स्टोरी ठीक करने को कहा था, जब मुझे लगा कि इसमें कुछ नहीं किया जाना चाहिए तो मुझे बात रखने के इरादे से एक शब्द जोड़ना पड़ा।

मैंने महसूस किया कि वे शिफ्ट इंचार्ज की ओर से की गई खुली तारीफ से बड़े शर्मिदा थे। बाद में मालूम पड़ा कि शिफ्ट इंचार्ज को इस बात की जानकारी ही नहीं थी कि झुमरी तिलैया कोई जगह है। खैर, ऐसा भी होता है।

1 comment:

Manish Kumar said...

wah bhai ye bhi khoob kissa bayan kiya aapne par apni wo story bhi yahan daal dete to kya achcha hota !