छठ के बहाने गुलजार हुए बिहार के गांव पर्व के बाद फिर होंगे खाली, कब रुकेगा
ये पलायन?
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प्रवासियों के लिए भीड़ एक संज्ञा है! प्रवासियों का दर्द त्यौहारों में और
बढ़ जाता है, वे भीड़ बन निकल पड़ते हैं अपनी माटी की ओर, जहां से उन्हें
हफ्ते भर ब...
2 weeks ago
3 comments:
अभी तो यह चमचागिरी की शुरुआत है. आगे आगे देखिये होता है क्या? ऐसे ही लोग मनमोहन सिंह को पंडित जवाहर लाल नेहरु के समतुल्य बता रहे हैं. कहाँ नेहरु कहाँ मनमोहन. खुदा खैर करे
अभी तो यह चमचागिरी की शुरुआत है. आगे आगे देखिये होता है क्या? ऐसे ही लोग मनमोहन सिंह को पंडित जवाहर लाल नेहरु के समतुल्य बता रहे हैं. कहाँ नेहरु कहाँ मनमोहन. खुदा खैर करे
आज कल पत्रकारिता कोई धर्म नहीं रह गया है बल्कि वास्तव में यह एक व्यवसाय बन गया है. और व्यवसाय का अर्थ है फायदा, चाहे वो जैसे भी हो, मक्खनबाजी से हो या जुगाड़ टेक्नोलॉजी से. इसलिए आज के ज़माने में न्यूज़ धर्म निभाना या पत्रकारिता में नैतिकता या मर्यादा की बात बेमानी सी हो गयी है. चंद स्वनामधन्य लोग पत्रकारिता धर्म को नए ढंग से परिभाषित करने पर तुले हुए हैं. आज कल तो 'दूल्हा बिकता है" की तर्ज पर खबर भी बिकने लगा है.
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