राजधानी के लुटियंस इलाके व उसके आसपास मनाया जाने वाला फिल्मोत्सव अब पुरानी परंपराओं को दरकिनार करते हुए शहर की झुग्गी बस्तियों में पहुंच गया। स्पृहा (गैर सरकारी संस्था) ने बच्चों की कोमल कल्पनाओं में और पंख लगाने के इरादे से दिल्ली के नई सीमापुरी इलाके में सड़क छाप फिल्म उत्सव का आयोजन किया।
उत्सव का उद्देश्य बच्चों में संवेदनशीलता कायम रखने व गरीब बच्चों से छिन रहे बचपन को लौटाने का है। हालांकि, यह एक चुनौती है, जिसे स्पृहा ने अनूठे अंदाज में पूरा करने की जिम्मेदारी ली है।
यहां उत्सव के दौरान बच्चों को 'चिरायु', 'छू लेंगे आकाश', 'जवाब आएगा' और 'उड़न छू' नाम की चार बाल फ़िल्में दिखलाई गईं। स्पृहा के संचालक पंकज दुबे ने बताया कि मल्टीप्लेक्स की संस्कृति में ये बच्चे मनोरंजक फिल्में देखने से महरूम रह जाते हैं। हमारी कोशिश बस इतनी है कि इन बच्चों को भी बेहतर फिल्म दिखाने को मिले।
उत्सव का आयोजन चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी आफ इंडिया(सीएफएसआई) के सहयोग से किया गया था। यकीनन पंकज इस प्रयास के लिए बधाई के पात्र हैं। लेकिन, यदि ये प्रयास हिंदुस्तान के बज्र देहाद में भी पहुंचे तो क्या कहने हैं !
3 comments:
समाज में ऐसी पहल पहले भी होती रही है। आपने ही सफर का जिक्र करते हुए यह बताया था कि एक कार्यक्रम के तहत सफऱ नाम की गैर सरकारी संस्था बिहार के गांव में बच्चों से फिल्म बनवाने का काम किया है। इन पहलों के साथ मैं भी रहना चहुंगी। शुक्रिया
पहल तो सराहनीय है पर उद्देश्य के प्रति इमानदारी बनी रहे यह जरूरी है।
जनाब मार्केटिंग है क्या? जो भी है अच्छा है।
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