Thursday, September 8, 2011

कैद में मोहम्मद साहब के पद चिन्ह


मोहम्मद साहब के पद चिन्ह>

आज हम जहां सैर पर हैं, वह फिरोजशाह के बेटे फतेहशाह की कब्रगाह है। यह इसलिए भी पाक मानी जाती है, क्योंकि यहां मक्का से मंगवाए गए वे पत्थर लगे हैं जिसपर मोहम्मद साहब चला करते थे। 13वीं शताब्दी में फिरोजशाह ने अपने आध्यात्मिक सलाहकार मखदूम जेहान गश्त से इस पत्थर को मक्का से मंगवाया था। वह इसे अपनी कब्र पर लगवाना चाहता था, लेकिन संयोग था कि फिरोजशाह से पहले उसके बेटे फतेहशाह की मृत्यु हो गई। और वह पवित्र पत्थर उसी की कब्र पर लगा दी गई।

खैर, आज इस जगह पर चित्रगुप्त मार्ग और ऑरिजनल रोड से पहुंचा जा सकता है। यह पहाड़गंज से आगे कुतुबमार्ग पर सदर बाजार की तंग गलियों में है और ‘कदम शरीफ’ के नाम से मशहूर है जो कई दरवाजों से घिरी इमारत है। यहां एक मस्जिद भी है। फिरोजशाह ने तो यहां एक मदरसा भी बनवाया था जो अब अस्तित्व में नहीं है। प्रचलित है कि इस इमारत को फिरोजशाह ने अपनी कब्रगाह के तौर पर बनवाया था ताकि उसे यहां दफनाय जा सके। इमारत के एक छोर पर एक गुंबद युक्त छोटी इमारत का निर्माण कराया गया था। इसके मध्य में एक आयताकार कब्र बनाई गई थी जो फिरोजशाह के लिए थी।

इतिहासकारों का कहना है कि फिरोजशाह बड़ा ही धार्मिक व्यक्ति था। उसने संत मखदूम जेहान को मक्का भेजा था ताकि वहां से हजरत मोहम्मद का लबादा लाया जा सके। पर मखदूम इस काम में असफल रहे। उन्होंने फिरोजशाह को बताया कि हजरत मोहम्मद की ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिसे खलीफा अपने-आप से अगल नहीं करना चाहते हैं। इसके बाद फिरोजशाह ने ढेर सारे तोहफे के साथ उन्हें फिर मक्का भेजा। इससे प्रभावित होकर खलीफा ने मोहम्मद के पैरों के निशान वाले पत्थर फिरोजशाह को भिजवाए। इस पत्थर को फिरोजशाह अपनी कब्र पर लगाना चहाता था। पर यह हो न सका। दरअसल, फिरोजशाह के बेटे फतेहशाह ने अपने पिता से वादा लिया था कि उसकी कब्र पर उक्त पत्थर लगाए जाएंगे। दुर्भाग्य से जब ऐसा हुआ तो फतेहशाह को वहीं दफनाया गया जिसे फिरोजशाह ने अपने लिए बनवाया था और उसकी कब्र पर उन पत्थरों को लगा दिया गया। इसके बाद वह दरगाह कदम शरीफ कहलाया।

पहले दारा सिकोह और फिर जयसिंह की सेना में रहा एक इतालवी लेखक निकोलो मोन्युकी ने अपनी किताब ‘स्टोरिया दी मुगल’ में लिखा है कि कदम शरीफ को हजरत मोहम्मद के पदचिन्ह को रखने के लिए बनवाया गया था। और वह 17वीं शताब्दी में मस्लमानों द्वारा दर्शन किए आने वाले सबसे प्रमुख तीर्थस्थलों में था। पुस्तक में यह भी कहा गया है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने इस जगह को अपने धार्मिक उद्देश्य के लिए भी इस्तेमाल किया था।


फतेहशाह की कब्रगाह>

मुसलमानों की यह पवित्र दरगाह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है, लेकिन आज बदहाली के कगार पर है। हालांकि यह पुरातत्व विभाग के अधीन नहीं। एक मुस्लिम परिवार इसकी देख-रेख करता है। अंदर प्रवेश करने पर पूरी जमीन कबूतरों की गंदगी से भरी पड़ी दिखती है। फतेहशाह की कब्र पर भी धूल जमे हुए हैं। यहां पवित्र पत्थर कोई अता-पता नहीं है। वहां रहने वाले जहीर से पूछा तो उसने कहा, “1947 के दंगों में दंगाइयों ने इस पत्थर को निकाल दिया था। तभी से वह हमारे पास है।” कहने पर वह उस पवित्र पत्थर को दिखाता भी है। हालांकि आसपास के लोग अलग राय रखते हैं। वे कहते हैं कि सरकारी विभागों की अनदेखी के कारण इन लोगों ने यहां कब्जा जमा रखा है। गौर करें कि यह इमारत उसी फिरोजशाह ने बनवाई थी जिसने दिल्ली को न सिर्फ खूबसूरत बनाया, बल्कि जब कोई पुरातत्व विभाग नाम की चीज नहीं थी तब भी कुतुबमीनार जैसी ऐतिहासिक इमारतों का जीर्णोद्धार करवाया था। आज सबकुछ है। इसके बावजूद यह पवित्र इमारत उपेक्षित है। गंदगी में सनी हुई।

(श्रुति अवस्थी की खास रपट)

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