छठ के बहाने गुलजार हुए बिहार के गांव पर्व के बाद फिर होंगे खाली, कब रुकेगा
ये पलायन?
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प्रवासियों के लिए भीड़ एक संज्ञा है! प्रवासियों का दर्द त्यौहारों में और
बढ़ जाता है, वे भीड़ बन निकल पड़ते हैं अपनी माटी की ओर, जहां से उन्हें
हफ्ते भर ब...
2 weeks ago
8 comments:
वाह कलियुग पर क्या खूब लिखा है।
कलयुग नहीं कर-जुग है यह, यां दिनको दे और रात ले।
क्या खूब सौदा नक़्द है, इस हाथ दे उस हाथ ले।।
वाह ...।
वैसे दीवान की हिंदी साईट पता तो बताए।
कलयुग नहीं कर-जुग है यह, यां दिनको दे और रात ले।
क्या खूब सौदा नक़्द है, इस हाथ दे उस हाथ ले।।
waah dil khush ho gaya padhkar,behtarin.
ब्रजेश भाई,
नजीर की यह रचना अधूरी है....
लेकिन जो भी है लाजवाब है .
बहुत बढिया. सम्भव हो तो यह रचना पूरी दें.
वाह बहुत खूब पढ़वाया है मेरे भाई ...
मेरी कलम -मेरी अभिव्यक्ति
शुक्रिया! नज़ीर मेरे पसंदीदा शायर हैं।
Very factual
that's good.
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