गुजरात के विभिन्न जिलों में कई बच्चे नन्हें पत्रकार बन गए हैं। वे अपने अधिकारों की लड़ाई खुद लड़ रहे हैं, साथ ही जागरुक व जिम्मेदार नागरिक होने का प्रमाण भी दे रहे हैं।
ऐसी ही एक किशोरी है अहमदाबाद जिले के रजबलीका गांव की 15 वर्षीय बसंती। बसंती ने बताया, "जहां मैं रहती हूं वहां कुछ दिनों पहले तक शराब की काफी बिक्री होती थी। मेरे पिता भी शराब पीते थे। पुलिस को शिकायत की लेकिन कुछ नहीं हुआ। इसके बाद हम लोगों ने इसके विरोध में नुक्कड़ नाटक शुरू किया। घर-घर जाकर लोगों को शराब पीने से रोका और परचे बांटे।"
बसंती बताती है कि आज स्थिति बदल गई है। उसके पिता अब शराब को हाथ तक नहीं लगाते हैं। ऐसे और भी लोग हैं जिन्होंने शराब से नाता तोड़ लिया है और क्षेत्र में शराब की बिक्री भी कम हो गई है।
दरअसल, यह राज्य में गैर सरकारी संगठन 'चेतना' की पहल का नतीजा है। विकास की धारा से वंचित ये बच्चे अपने अधिकार की लड़ाई लड़ने के साथ सामाजिक जिम्मेदारियां भी वहन कर रहे हैं।
दस वर्षीय मनोज ने बताया, "पहले हमारे घर के निकट काफी गंदगी रहती थी। हम लोगों ने चंदा इकट्ठा कर सभी घरों के सामने कूड़ादान रख दिया है। एक आदमी भी है जो नियमित रूप से कूड़ा ले जाता है।"
राज्य में 'चेतना' बच्चों के लिए कई कार्यक्रम चला रही है, जिसमें 'बाल मित्र' भी शामिल है। इस कार्यक्रम के तहत नन्हें पत्रकार तैयार किए जा रहे हैं जो स्थानीय मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद करते हैं।
गुजरात के बलसाड़ जिले की 15 वर्षीय प्रीति ने बताया, "हम लोग 'बाल प्रभात' नाम से एक त्रैमासिक पत्रिका निकालते हैं, जिसमें स्थानीय मुद्दे उठाए जाते हैं।"
राज्य में 'जन जागृति', 'दिव्य संदेश' आदि पत्रिकाओं के माध्यम से भी बच्चे स्थानीय मुद्दे उठा रहे हैं। 'चेतना' से जुड़ी सोपना बेन ने कहा कि स्थानीय लोग बच्चों की बातों पर गौर करते हैं।
चेतना की उप निदेशक मीनाक्षी शुक्ला ने कहा कि यहां हम लोग बच्चों के अधिकार को लेकर आपसी संवाद व समझ कायम करने के लिए इकट्ठा हुए हैं, क्योंकि यह जानना जरूरी है कि जिनके कंधे पर देश का भविष्य है वे किन स्थितियों में हैं।
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