Sunday, April 15, 2012

‘साहिब मेरा मेहरबान’


एक अनुभव-सिद्ध ज्ञान केंद्र की बात उठी तो सभी एकबारगी सहमत दिखे। तब ऐसा लग रहा था कि वहां मौजूद सभी लोगों की बात रामबहादुर राय ने इस सूत्र वाक्य में रख दी है।
फिर संवाद प्रक्रिया आगे बढ़ी। पवनकुमार गुप्त की बारी आई। उन्होंने इस सूत्र वाक्य को थोड़ा विस्तार दिया। कहा, “ज्ञान केंद्र एक प्रयोग भी है। इन दिनों समाज में संवाद की प्रक्रिया लगभग खत्म हो गई है। हालात ऐसे हैं कि हम अपनी भाषा व मुहावरे में ही बातचीत नहीं कर पा रहे हैं। इन मुश्किलों से पार पाना होगा। इसके लिए ही ज्ञान केंद्र में समाज को समझने की कोशिश होगी।” फिर रणसिंह आर्य सरल अंदाज में बोले, “ज्ञान केंद्र एक ऐसा माहौल बनाए जहां जिंदगी सहज हो सके।”
हम बिजनौर जिले के गोविंदपुर स्थित झालू गांव में हैं। यहीं जीवन विद्या प्रतिष्ठान में 20 मार्च से बात-विमर्श का दौर चल रहा है। यह तीसरा व अंतिम दिन है। उक्त बातें इसी संवाद प्रक्रिया का अंश है। इलाके में यह केंद्र आश्रम के नाम से प्रसिद्ध है। रणसिंह आर्य का यही पता-ठिकाना है। उनके बुलावे पर ही साल भर बाद यहां लोग इकट्ठा हुए हैं। संवाद प्रक्रिया चल रही है। इसे ‘सह-चिंतन’ नाम दिया गया है। देशभर से करीब 45 से 50 लोग यहां आए हैं। इनमें से कुछ आगंतुकों के मन में अटकाव है। वे जवाब जानने को उत्सुक हैं कि गत 12 महीने में हमलोग कितनी दूरी तय कर पाए हैं, क्योंकि वे मान रहे थे कि संवाद से कई बातें साफ नहीं हो रही हैं। दरअसल, 25-27 मार्च, 2011 को सहचिंतन के लिए लोग यहां इकत्र हुए थे। यह उस श्रृंखला की दूसरी बैठक है।
तब रणसिंह आर्य ने कहा, “खेती पर प्रारंभिक प्रयोग शुरू किए गए हैं। आर्थिक मुश्किलें भी नहीं हैं। उसकी हमें कोई चिंता भी नहीं है। बस, वैसे प्रतिबद्ध युवाओं की तलाश है, जो अपनी जिम्मेदारी को समझें।” फिलहाल केंद्र में खेती-किसानी का काम संदीप दंपती देख रहे हैं। इन्होंने करीब 40 खाद्य सामग्रियों को तैयार किया है। इसमें शहद, गुलाब शर्बत, च्यवनप्राश के साथ-साथ आंवले की कई चीजें हैं। दलहन भी है। चावल, दलिया और सरसों। यानी सूची लंबी है। हालांकि संदीप शर्मा पेशे से इंजीनियर हैं, पर सामाजिक जिम्मेदारी को उठाना उनके स्वभाव का हिस्सा है। शिक्षिका पत्नी का उन्हें पूरा सहयोग मिलता है। दोनों के प्रयास से यहां कुछ अभिनव प्रयोग हुए हैं।
स्थानीय निवासी और केंद्र से गहरा जुड़ाव रखने वाले प्रशांत महर्षि ने कहा कि व्यक्ति निर्माण केंद्र के रूप में इस जगह की स्थापना हुई थी। फिर जीवन विद्या, मध्यस्थ ज्ञान को लेकर रणसिंह आर्य आए। फिलहाल आगे की योजनाएं बन रही हैं। इस चर्चा के दौरान बात निकलकर आई कि ‘संजीवनी’ नामक दो साल का पाठ्यक्रम शुरू किया जाएगा, जो पूरी तरह अनुभव आधारित होगा। यह पाठ्यक्रम मोटे तौर पर 20 से 25 वर्ष के युवाओं के लिए होगा।
यहां स्वास्थ्य संबंधी दूसरी योजनाएं भी आकार ले रही हैं। इन कामों से सत्य प्रकाश भारत, डा. प्रकाश जैसे लोग गहरे जुड़े हैं। पिछले साल जो बातें मन में अस्पष्ट थी। अब वह आकार ले चुकी है। कुछ के तो नींव भी पड़ गए हैं। यकीनन, एक साल में इससे ज्यादा की उम्मीद ठीक नहीं है। अब हम आश्रम से दूर निकल आए हैं। पर उसकी दीवार पर मोटे अक्षरों से लिखी पंक्ति ‘साहिब मेरा मेहरबान’ को पढ़ने में कोई मुश्किल नहीं हो रही है। तो क्या यहां बापू की कुटिया बनने जी रही है?